- सड़क दुर्घटनाओं में घायलों के मददगार पाएंगे इनाम
- अस्पताल पहुंचाने वालों को पूछताछ के नाम पर पुलिस नहीं करेगी परेशान
- प्रत्यक्षदर्शी हैं तो एक बार होगी पूछताछ
सड़क दुर्घटना में घायलों की मदद करने वालों को अब सरकार इनाम देने जा रही है। सरकार ऐसे नियम बना रही है जिससे सड़क दुर्घटना में घायलों को अस्पताल पहुंचाने वालों को पुलिस पूछताछ के नाम पर प्रताड़ित न कर सके। अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों से इलाज का पैसा भी नहीं मांगा जाएगा। मदद करने वालों को यदि पुलिस या प्रशासन के अफसर परेशान करते हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
केंद्र सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इस बारे में एक अधिसूचना जारी कर दी है। इसे प्रदेश सरकार के पास भेजा गया है। प्रदेश सरकार इसी के अनुसार नियमावली बनाने में जुट गई है। सूबे का परिवहन विभाग ऐसी नियमावली बना रहा है ताकि सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्तियों की मदद के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग आगे आएं।
अब कोई भी व्यक्ति जो घायलों को पास के अस्पताल ले जाएगा उससे कोई भी प्रश्न नहीं पूछा जाएगा।
सरकार मददगार नागरिकों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें इनाम भी देगी। नियम ऐसे बनाए जा रहे हैं ताकि मदद करने वालों को तुरंत ही अस्पताल से जाने की अनुमति दे दी जाए। पहले घंटों पूछताछ की जाती थी। घायल शख्स के बारे में पुलिस को सूचना देने वाले को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर या फिर फोन पर अपना विवरण देने के लिए भी अब विवश नहीं किया जाएगा।
मेडिको लीगल फॉर्म में होगा बदलाव
प्रदेश सरकार अस्पतालों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले मेडिको लीगल केस के फॉर्म में भी बदलाव करेगी। इसमें हादसे में घायलों को अस्पताल लाने वाले का नाम व पता दर्ज करना वैकल्पिक एवं स्वैच्छिक किया जाएगा। यदि कोई अपना नाम नहीं बताना चाहता है तो उस लाइन को ऐसे ही छोड़ दिया जाएगा।
यदि घायल को अस्पताल पहुंचाने वाला व्यक्ति घटना का प्रत्यक्षदर्शी भी है
और पुलिस को मुकदमें के दौरान उसकी जांच-पड़ताल करनी जरूरी है तो उससे एक
बार ही पूछताछ की जाएगी। इसके लिए सरकार एक नियमावली बनाएगी। ऐसा इसलिए हो
रहा है ताकि मदद करने वाले लोगों को प्रताड़ित व उत्पीड़ित न किया जा सके।
डॉक्टरों ने इलाज न किया तो होगी कार्रवाई
यदि कोई पास के अस्पताल में घायल को पहुंचाता है तो वहां मौजूद डॉक्टर को
तुरंत उसका इलाज करना होगा। यदि डॉक्टर ने इलाज करने से मना किया या फिर
आनाकानी की तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसे व्यावसायिक कदाचार
की श्रेणी में मानते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की तैयारी है।
उप्र में हर साल 36 हजार लोगों की मृत्यु सड़क हादसे में होती है। ज्यादातर
हादसों में मृत्यु समय पर इलाज न मिल पाने के कारण होती है। अक्सर यह देखा
जाता है कि घायल व्यक्ति को लोग इसलिए अस्पताल पहुंचाने से कतराते हैं
क्योंकि वे पुलिस के पचड़े से बचना चाहते हैं। इसी समस्या को देखते हुए
सरकार नई नियमावली बना रही है। वहीं, सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए
प्रदेश सरकार पहले ही सूबे में ‘राज्य सड़क सुरक्षा नीति’ लागू कर चुकी
है।