तमाम योजनाओं और पैसा खर्च करने के बावजूद कई काम अपने अंजाम तक नहीं
पहुंच पाते हैं। लेकिन हरदोई जिले के एक गांव के निवासियों ने वो काम कर
दिखाया जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं और उनके इस कार्य की जितनी प्रशंसा
की जाए, कम है। इस ग्रामीणों ने पिछले 30 सालों से एक तालाब में कछुओं को
संरक्षित करने का काम किया जिनकी संख्या अब 2000 से अधिक हो चुकी है। वन
विभाग ने जांच में पाया कि ये कछुए अत्यंत दुर्लभ प्रजाति के हैं। यह बात
तब सामने आई जब तालाब इन कछुओं के लिए छोटा पड़ने लगा और ग्रामीणों ने
इसमें सहयोग के लिए वन विभाग से गुहार लगाई।
हरदोई के गांव में मिले दुर्लभ प्रजाति के कछुओं का
तालाब में कछुए संरक्षित कटहुआ (एस्पिडरेटस राजटिक्स) प्रजाति के
हैं।
ग्रामीणों के प्रयास को प्रमुख वन संरक्षक रूपक डे ने सराहा और कहा कि
वन्य व जलीय जीवन जीवों को संरक्षित करने में योगदान देने के लिए ककराखेड़ा
गांव के लोग बधाई के पात्र है। इसी तरह सभी नागरिकों को जीव जन्तुओं के
प्रति सद्भाव रखना चाहिए। उन्होंने बताया कि तालाब को संरक्षित व सुदृढ़
करने के लिए डीएफओ हरदोई को प्रोजेक्ट बनाने का निर्देश दिया गया है।
बिलगराम रेंज के ग्राम ककराखेड़ा में वन विभाग को एक ऐसा तालाब मिला है
जिसमें दुर्लभ प्रजाति के 2000 से अधिक कछुए चहल-कदमी कर रहे हैं।
ग्रामीण
बताते हैं कि लगभग 30 साल पहले इस तालाब में चार कछुए छोड़े गये थे, तब से
इनकी संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इन कछुओं को ग्रामीणों का पूरा
संरक्षण प्राप्त है। कछुओं के शिकार करने वाले कंजड़ व अन्य लोगों को इस
तालाब के नजदीक जाने की सख्त मनाही है। संख्या अधिक होने के कारण तालाब का
क्षेत्र अब इनके लिए कम पड़ रहा है। कछुओं को इसी तालाब में संरक्षित करने
के लिए वन विभाग तालाब का क्षेत्रफल बढ़ाने के साथ ही उसके सुदृढ़ीकरण व
सुंदरीकरण की योजना बना रहा है।
शिकारियों से बचाने के लिए ग्रामीण करते हैं तालाब की लगातार निगरानी : अवैध
शिकार के कारण प्रदेश के अधिकतर तालाबों से जहां कछुओं की संख्या लगातार
घट रही है, वहीं इस छोटे से तालाब में 2000 से अधिक दुर्लभ प्रजाति के कछुए
मस्ती कर रहे हैं। इस तालाब में बरसात का पानी संरक्षित किया जाता है।
गर्मी में पानी की कमी होने पर गांव के नलकूप व अन्य साधनों से इसमें पानी
छोड़ा जाता है। कछुओं को शिकारियों से बचाने के लिए तालाब की लगातार
निगरानी की जाती है।