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ग्रामीण स्वास्थ्य को लेकर बिहार में हो रहे उत्साहजनक प्रयोग बने देश के लिए रोड मैप : बेहद कम खर्च में अच्छे नतीजे को आशा भरी नजरों से देखा जा रहा

स्वास्थ्य पैमानों पर फिसड्डी माने जाते रहे बिहार में इन दिनों कई उत्साहजनक प्रयोग हो रहे हैं। जच्चा - बच्चा की जिंदगी बचाने और उन्हें सेहतमंद बनाने के लिए की जा रही कवायदें, इनमें सबसे अहम हैं। इनकी खास बात यह है कि डॉक्टरों की भारी कमी से ये नर्स व कार्यकर्ताओं के कंधों पर चल रही हैं। बेहद कम खर्च में अच्छे नतीजे ला रहे इन नुस्खों को अब देश भर में आशा भरी नजरों से देखा जा रहा है।
In low-income communities, many women and newborns die during pregnancy and childbirth from conditions that can be easily prevented using cost-effective interventions.

सरकारी कार्यक्रमों में डॉक्टरों की भारी कमी की वजह से देशभर में स्वास्थ्य कार्यक्रमों को लोगों तक पहुंचाने का भार मूल रूप से लगभग नौ लाख आशा, 12 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और दो लाख एएनएम पर है। लेकिन पर्याप्त मानदेय, प्रशिक्षण, संसाधन, प्रोन्नति, प्रोत्साहन आदि की कमी से अधिकांश राज्यों में इनकी कार्यक्षमता बहुत सीमित है। ऐसे में बिहार में पिछले कुछ सालों में इनकी कार्यक्षमता बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान दिया गया है।  राज्य सरकार और अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ‘बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ की साङोदारी में हुए इस प्रयोग के नतीजे विभिन्न अध्ययनों में सही साबित हो रहे हैं और इन्हें दूसरी जगहों पर अपनाया जा रहा है।

साझा टीम का गठन
आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अगर अपनी जिम्मेदारियों को प्रभावशाली तरीके से पूरा करें तो जच्चा और बच्चा की मौतों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इनको प्रोत्साहन देने और टीम भावना जगाने के लिए बेगूसराय जिले के 76 उप केंद्रों पर टीम आधारित लक्ष्य व प्रोत्साहन (टीबीजीआइ) योजना शुरू की गई है। उप केंद्र की एएनएम के नेतृत्व में इलाके की सभी आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का दल बनाया गया है। टीके लगाने, प्रसव के लिए अस्पताल पहुंचाने आदि जिम्मेदारियों में से इन दलों ने अपने लिए लक्ष्य तय किए हैं। तिमाही के अंत में स्वतंत्र रूप से इनका आकलन कर लक्ष्य पूरा करने वाली टीम को विशेष आयोजन कर जिला प्रशासन से पुरस्कृत कराया जाता है। इससे दो अलग-अलग मंत्रलयों और व्यवस्था में काम करने वाली आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं के बीच पहली बार नियमित तालमेल हो सका है।

 
मोबाइल पर मदद
स्वास्थ्य से जुड़ी गलत धारणाएं दूर करने और जरूरी संदेश पहुंचाने के लिहाज से आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को ‘मोबाइल कुंजी’ दी गई है। इसमें चित्र, काटरून आदि से सजे अलग-अलग संदेश वाले 40 कार्ड का एक पैक होता है, जिन्हें ये एक-एक कर लोगों को दिखाती हैं। इन कार्ड पर एक नंबर उपलब्ध होता है, जिसे डायल कर कार्यकर्ता उससे जुड़ी ऑडियो क्लिप भी लोगों को सुनाती हैं। पटना के खोरमपुर आंगनबाड़ी की कार्यकर्ता रिंकी कहती हैं, ‘इसकी मदद से हम लोग भी हाई-फाई हो गई हैं। हम उन्हें बताती हैं कि इस पर डॉक्टर अनीता आपसे बात करेंगी तो लोग बहुत ध्यान से सुनते हैं।