The discovery of Bombay Blood Group was made more than 50 years ago with a patient who was admitted to KEM Hospital and required blood transfusions. A sample of blood was sent to the Blood Bank for grouping as is the usual practice. The red cells grouped like O group and hence O group blood was administered. The patient developed haemolytic transfusion reaction, and therefore transfusion had to be stopped.
A detailed study of the patients blood revealed a rare genotype (blood group), which was neither ‘A’ nor ‘B’ nor ‘AB’ nor ‘O’. Since the first case was detected in Mumbai (then Bombay), the blood group came to be called as Bombay Blood Group. Blood from a Bombay Blood Group individual only should be transfused to a Bombay Blood Group patient.
- संजीवनी बना ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’
- राज्यभर के जरूरतमंदों को कराया जाता है उपलब्ध
- 10 हजार में से एक व्यक्ति में होता है यह ब्लड ग्रुप
दुनिया भर में दुर्लभ माने जाने वाले ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ के सदस्यों ने झारखंड में अब तक कई लोगों की जान बचाई है। इस ब्लड ग्रुप के सदस्यों की संख्या बहुत ही सीमित होती है, लिहाजा इन्हें गुप्त रूप से व सहेजकर रखा जाता है। जमशेदपुर जिले के बिष्टुपुर स्थित ब्लड बैंक में कुल छह लोगों का नाम दर्ज है, जिनका ब्लड ग्रुप बॉम्बे है। प्रदेश भर में कहीं भी जरूरत पड़ने पर उन्हें फोन कर बुलाया जाता है। आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष इस ब्लड ग्रुप की मांग 8-10 यूनिट होती है। कुछ दिन पूर्व ही रांची में एक सड़क दुर्घटना में घायल को इस ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ी।
विशेषज्ञों के अनुसार ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ देशभर में दुर्लभ है और अधिकांश लोग इससे अनजान हैं। सामान्य रूप से मुख्यतया चार ब्लड ग्रुप होते हैं। ए, बी, एबी और ओ। ज्यादातर लोगों का ब्लड ग्रुप इन्ही में से होता है। खासतौर पर एशिया में करीब 39 फीसद लोग ओ पॉजिटिव होते हैं। लेकिन इससे परे एक और दुर्लभ ब्लड ग्रुप ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ होता है। ब्लड बैंक के अधिकारियों का कहना है इस ग्रुप के रक्तदाताओं को गुप्त तरीके से रखा गया है, ताकि उनका गलत इस्तेमाल न हो सके।
क्यों दुर्लभ है ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ की लाल रक्त कोशिकाओं में एंटिजन ए, बी या एच मौजूद नहीं होता। ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ की यही खासियत इसे अन्य ब्लड ग्रुप से अलग बनाती है। इसकी खोज 1952 में मुंबई के एक हॉस्पिटल में डॉ वाईएम भेंडे द्वारा की गई थी। इसी वजह से इस ब्लड ग्रुप को ‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप’ नाम दिया गया। भारत में 10 हजार लोगों में से एक में यह ब्लड ग्रुप पाया जाता है, जबकि यूरोप में 10 लाख लोगों में से एक में यह ब्लड ग्रुप होता है।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप में ए या बी एंटिजन न होने की वजह से इसे ओ ब्लड ग्रुप समझने की भूल की जा सकती है। इस भूल से बचने के लिए डॉक्टर रिवर्स ग्रुपिंग या सीरम ग्रुपिंग की सलाह देते हैं। इसे दुर्लभ मानते हुए कई संस्थाएं इस ब्लड ग्रुप को उपलब्ध कराने का काम करती हैं। इसमें थिंक फाउंडेशन, संकल्प इंडिया फाउंडेशन जैसी संस्थाएं प्रमुख हैं। इसके अलावा बॉम्बे ब्लड ग्रुप कम्युनिटीज भी हैं, जहां ऐसे ब्लड ग्रुप के लोग खुद को पंजीकृत कर सकते हैं।‘बॉम्बे ब्लड ग्रुप काफी दुर्लभ है। ऐसे ब्लड ग्रुप के लोगों को बचा कर रखना पड़ता है। ताकि जरूरत पड़ने पर पीड़ित को मदद की जा सकें।